इतना मुश्किल भी नहीं था

इतना मुश्किल भी नही था
यादों को बाँध लेना शू लेस के साथ
और जॉगिंग करते हुये झाड़ देना मन से
झन्न झन्न करते दुखों का कॉलेस्ट्रॉल

इतना मुश्किल भी नहीं था
प्रेम मे मिले वैभवशाली घावों के पहाड़
को निकाल देना अपने आँगन के रास्ते
घर से बाहर हमेशा हमेशा के लिये

इतना मुश्किल भी नहीं था
सिर धुनती बंदिशों को दूध, अखबार,
और राशन के बिल के साथ चुका
दिया जाना और हो जाना कर्ज़मुक्त

इतना मुश्किल भी नहीं था
अपने माथे के पसीने को पोछकर
होशियारी को खतरे के निशान के ऊपर
तक ले जाकर खपा देना खुद को

इतना मुश्किल भी नहीं था
ग्रीन रूम के आरसियों मे खोकर
पाल लेना वहम एक सितारा होने
का और हो जाना गरूर मे चूर चूर

बहरहाल
इतना आसान भी नहीं था
भर लेना एक दुस्साहसिक उछाल
और ब्याह देना खुद को एकाकीपन से
और बन जाना अपनी मुक्ति का चौकीदार

जोशना बनर्जी आडवाणी की अन्य रचनाएँ।

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