मैं अगर तुम्हारे दिल में दाखिल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
जाड़े की सुबह,
चली आती है धूप मेरे कमरे के भीतर।
जैसे आ चुकी भी है,
और आने में भी है।
मैं अगर तुम्हारे दिल में शामिल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
हर मौसम में शामिल धूप रहती है।
मुख़्तलिफ़ मिक़दार में
पर मुस्तक़िल एहसास में।
मैं अगर तुम्हारे दिल मे शामिल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
खून होता है
शरीर की सब नसों में जीवन बनकर शामिल
और जैसे खून के दान का सुकूँ
मौजूद रहता है जीवन के साथ हमेशा।
मैं अगर तुम्हारे दिल पर नाज़िल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
दांते का लेखन,
पूरा उतर आया था बियैट्रिस पर।
जैसे अपनी सारी रौशनी के साथ
महर फ़लक के आसमाँ पर नाज़िल होता है।
मैं अगर तुम्हारे दिल की मंज़िल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
तस्कीन होती है,
इंसान की सब हसरतों की आखिरी मंज़िल।
आगे जिस के दिल की कोई
और चाह ना हो।
मैं अगर तुम्हारे दिल के काबिल होना चाहूँ
तो चाहूँगा कि होऊँ जैसे
हर मायने में,
नीलकंठ काबिल है गहरे नीले रंग के।
और जैसे सुर्ख़, पुर-जमाल एक गुलाब,
इश्क़ की अलामत कहे जाने काबिल है।
मैं अगर तुम्हारे दिल पर नज़्म लिखना चाहूँ
तो मैं लिखना चाहूँगा
बस एक ‘शब्द’
जो तुम्हें अज़ीज़ हो।
शब्द, जिसको पढ़कर
सबको लगे कि ‘शब्द’ है।
शब्द, जिसको पढ़कर
तुमको लगे कि ‘नज़्म’ है।
मैं अगर तुम्हारे दिल…….
‘Tumhare Dil Mein Agar Main Chahun’ A Poem by Pradumn R. Chourey
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