आत्महत्या के विरुद्ध


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सूरज अपनी रोशनी समेट रहा था,
चाँद आसमान को फाड़ कर बाहर निकल रहा था
आसमान पहले से भी ज्यादा गहराता जा रहा था
धुंध बेवज़ह घरों से निकल कर भाग रही थी
कुत्ते आज भौंकने की जगह दहाड़ रहे थे
वो दफ़्तर से निकला आदमी
नींद की गोली की जगह
चूहे मारने की दवा
यह कह कर ख़रीद रहा था
कि पत्नी आजकल
चूहों से ज्यादा परेशान रहती है।

औरत दिमाग और जुबान पर ताला लगाकर
हाथों को काम पर गिरवी रख चुकी थी।

बच्चे पता नहीं क्यों आज
कॉपी के सबसे आखिरी पन्ने पर
पापा को मम्मी को पीटते हुए का
चित्र बना रहे थे?

बच्चे सुबह स्कूल जाने की बजाय रो रहे थे,
घर के बाहर सफ़ेद रंग का शामियाना तन चुका था
वह दफ़्तर वाला आदमी कह रहा था
मैं रात को जल्दी सो गया था
और वो महीने के आखिरी
का कैलेंडर बदल रही थीं।
और डॉक्टर की रिपोर्ट बोल रही थी कि
नींद की गोली की जगह
चूहे मारने की दवा खायी है
इस औरत ने।

लेक़िन वो तो,
आत्महत्या के विरुद्ध थीं?

‘Aatmhatya Ke Viruddh’ A Hindi Poem by Manjul Singh

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