चंद ही रोज़ और फिर बदल जाएगी ज़िंदगी

उदास शहर की उदास खिड़की पर
इन दिनों बेरुख़ी है
नहीं उतरता उसकी ग्रिल पर
चिड़िया का शोर

चारों ओर फैले सुनसान में
संगीतकार सुन नहीं पा रहा स्वर
साधु लगा नहीं पा रहा ध्यान
बच्चे की गेंद भी वो आवाज़ नहीं कर पा रही
जो ख़लल पैदा कर दे पड़ोसी की नींद में

पहाड़ की बर्फ़ पहाड़ पर ही गिरती है
और हवा का एक कण भी नहीं आ पाता मैदान में
समुद्र की लहरें भी उठ कर वहीं बरस रही
मौसम वैज्ञानिक साबित होते जा रहे झूठे

सड़कें भी एक शहर से दूसरे नहीं जा रहीं
स्टैंड पर खड़ी मोटरें हैं बच्चे के वे खिलौने
जिसकी बैट्री निकाल दी गई है
यार्ड में सुस्त पड़ी रेलें भी कर रहीं हैं याद
हज़ारों अनगिनत यात्राओं के लेखे
पगडंडियाँ इतिहास की वो घटनाएँ हो गई हैं
जिनके बारे में खोजी ही बता सकेगा भविष्य में कुछ

नदी के तट रुठे हैं
कि रोक नहीं रहा पानी पैर की छपछप से कोई
और नदी बहती चली जा रही

पहाड़ के सीने पर झूलता पुल मर गया जैसे
नहीं कर रहा चूँ चूँ वाली आवाज़
वर्दी में पुलिस का जवान डँटा है मोहल्ले की
सरहद पर
बिना पंजों के घूम रहा लिए चील की आँख
कोट वाली डाक्टरनी भी मुस्तैद है आठों पहर
कि आ न जाए कोई हाँफता बदहवास

बाज़ार पुरातन सभ्यता का शब्द है अभी
रेस्टारेंट और इंतज़ार भी

प्रेमिका को अब भी करना है
पिछले महीने के परसों वाली शाम को हुए झगड़े का हिसाब

सड़क पर कुत्ते भी भूं भूं नहीं कर रहे
अपने आप ही हो गए समझदार

रसोई में खाना पकाती गृहिणी
अब भी देखती है दीवार पर टँगी घड़ी

शहर की सीमा पर बन रहे मकानों पर
अब भी बँधी हैं बाँस की बल्लियाँ
रोटी की जुगाड़ में भी आ रहा मज़दूर को ये ख़याल कि ‘दो हाथ और लगेंगे’ तब जा के होगी मज़बूत

गुज़रता जा हर दिन, दो दिन है

सुबह के अख़बार ने ख़बर दी है
कि चंद ही रोज़ और फिर बदल जाएगी ज़िंदगी

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