छवि


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जहाँ सभी लिख रहे हैं,
प्रेम पर अपने हिस्से के किस्से,
मैंने पाया स्वयं को अक्षम प्रेम पर लिखने में,

किसी के लिये,
प्रेम हृदय की कली पे विराजमान तितली है,
तो कहीं शोरगुल के मध्य एकांत की अनुभूति,

कोई दे रहा है उपमा,
प्रेम को युद्ध से न लौटे प्रेमियों के आखरी ख़त की,
तो कोई मोनालिसा के जटिल चित्र की,

कहीं अलंकारों से सुस्सजित,
प्रेमिका के सौंदर्य पर लिखे जा रहे हैं रसिक लेख,
तो कहीं भावनात्मक ज्वारभाटा घोषित हुआ है प्रेम,

हर तरफ,
रेशमी विभा सा
परिभाषित किया जा रहा है प्रेम
विभिन्न नादों, प्रसंगों और भाव उर्मिलों से,

पर मैं नही कर पा रहा,
ऐसी कोई कल्पना तुम्हारे लिये,
तुम्हें लिखने से पहले ही,
तुम मुझमें व्याप्त हो चुकी हो,

प्रेम में सभी कवि हो रहे हैं,
मैंने तुम्हारी छवि बनना चुना है।

Chhavi, A beautiful hindi poem by Devansh Dixit

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