सज़ाओं में सबसे भीषण सज़ा
मैं समझती रही मृत्युदंड या कारावास को
लेकिन देश निकाला होती है सबसे कठोर सज़ा
यह मैंने तुम्हारे हृदय से निकलते हुए जाना
‘जाना’ हिन्दी की सबसे खौफ़नाक क्रिया है
कहते हैं केदारनाथ सिंह
लेकिन ‘निकाला जाना’ उससे भी भयानक क्रिया है
यह मैंने तुम्हारे हृदय में धक्के खाते हुए जाना
प्रत्येक ‘जाना’ में शामिल नहीं होता ‘निकाला जाना’
कुछ लोग जमे रहते हैं जाने के बाद भी
किंतु ‘निकाले जाने’ में ‘जाने’ के इतर
शामिल रहता है और भी कितना कुछ
यह मैंने तुम्हारे हृदय से निकलने के बाद जाना
चावल पछोरते हुए कहती है माँ
कीड़े पड़ सकते हैं दुनिया की हर चीज़ में
तब एक हाथ से दबाते हुए नाक
दूसरे हाथ की तर्जनी और अँगूठे से बनाकर
‘चिमटी’ उठा फेंकते हैं ऐसी चीज़ों को बाहर
प्रेम में भी कैसे पड़ जाते हैं कीड़े
यह मैंने तुमसे प्रेम करते हुए जाना।
‘Desh Nikala’ A Hindi Poem By Nidhi Dwivedi