एक महामारी के चलते पूरी दुनिया मे हाहाकार मचा हुआ था। ऐसी समस्या से निपटने के लिए तैयारियाँ और अनुभव न होने से देश मे कुछ भी हो रहा था। वो सब जिसपे यकीन करना मुश्किल था। हर ओर आपधापी मची हुई थी। कोई और रास्ता न देखते हुए सरकार ने लोगों को घरों मे बंद कर दिया था। पर मात्र 4 घंटे की मोहलत दे कर 50 दिनों से अधिक के लॉक डाउन मे जनता परेशान थी। वो कैसे भी घर जाना चाहती थी और इस अभूतपूर्व विस्थापन के लिए कोई इंतजाम न होने की वजह से सरकार उन्हे कैसे भी रोकना चाहती थी।
इन्हीं सब घटनाओं के चलते मीडिया/न्यूज मे बस मजदूरों और गरीबों की व्यथा कथा ही दिख रही थी। जैसे कभी टीचर गलती कर देता है तो बच्चे अगर उसे बताते हैं तो ज्यादा स्मार्ट बनने के चक्कर मे पिटाई खा जाते हैं, और साथ के बच्चे भी उस प्रश्न पूछने वाले को ही गलत ठहराते हैं। कुछ वैसा ही हो रहा था। लाचार पुलिस और व्यवस्था की लाठी सही व्यक्ति से प्रश्न ना पूछ पाने की मजबूरी मे सवाल उठाने वालों को ही पीट रही थी।
इन दिनों कई लेखक और कवि उग आए थे, जो दारुण व्यथा, करुण रस के महारथी बनते जा रहे थे। रोते-बिलखते बच्चे, बड़े-बूढ़े, सड़कों पे भूखे चलते लोगों की तस्वीर शब्दों या कूँची से उकेरते थे और लोगों की वाह वाही पाते थे। वो भी एक प्रामिसिंग आर्टिस्ट था। स्कूल मे साड़ी का किनारा हो, नदी-पहाड़-पेड़ वाली नेचर की तस्वीर हो या मिकी माउस या टॉम एण्ड जेरी देख के बनाने हों, उससे कोई पार नहीं पा पाता था। नौकरी के बोझिलपन को भरने के लिए उसने ये शौक फिर से जगा लिया था और पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया आदि पे अपनी तस्वीरें उकेर कर दसियों लाइक और सुपर्ब, शानदार आदि कमेन्ट पाता था। कइयों ने उससे कहा भी उसे तो अपनी खुद कि एक्सबिशन लगानी चाहिए, कइयों ने हौसला दिया उसे अपनी आर्ट बेचना भी शुरू करना चाहिए, आर्ट गॅलरी मे भेजनी चाहिए, प्रतियोगिताओं मे भेजनी चाहिए। उसने भेजी भी और ऑनलाइन ऑफलाइन कुछ तस्वीरें छपी भी।
पर उसे कुछ अब भी अधूरा सा लगता था, वो डाउट जो लगभग हर आर्टिस्ट को रहता ही है। उसे लगता था उसका सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी था। उसने देखा कि कैसे आर्टिस्ट इस महामारी की व्यथा लोगों तक पहुँचा कर प्रशंसा बटोर रहे हैं। उसे कुछ अद्भुत बनाना था। पर उसे चीजें देख के बनाने की आदत रही थी, अरिजनल काफी सोचने पे भी ना आया। उसने गूगल की मदद ली और फिर उसे idea क्लिक किया।
एक तस्वीर जिसमें एक बच्ची भूख से बेहाल सर झुकाए बैठी है और उससे कुछ दूरी पर एक गिद्ध नजरें गड़ाए उस बच्ची की मौत के इंतज़ार मे बैठा है। क्या शानदार तस्वीर थी। ये ना जाने कितने सालों से उस भुखमरी की प्रतीक तस्वीर थी। अगर इसे ही आज के परिपेक्ष्य मे बनाया जाए तो! झुरझुरी सी दौड़ गई पूरे शरीर मे सोचते ही।वाह वो मारा पापड़ वाले को।
उसने एक दारुण तस्वीर बनाई, जिसमें मजदूर और उनके बच्चे सड़क पे जा रहे हैं, बिलख रहे हैं पिचके पेट, सूखी, सूनी, शून्य मे ताकती आँखे, माँ-बाप कि पनीली आँखे, और सड़क पे पैरों से रिसता खून, आसपास गिरे पड़े लोग अपनी अंतिम साँसे गिनते हुए और उसने कुछ दूरी पर कुछ गिद्ध जिनके सर की जगह इंसानी चेहरे थे, और जिनकी नेताओं की सी वेशभूषा और टोपी थी। उसने तस्वीर बना के खत्म की, उसे देखा, और अपनी रचना पर वह खुद ही मंत्रमुग्ध हो गया। उसने शुक्रवार की शाम का इंतजार किया, वो शुभ मुहूर्त जब सबसे अधिक लोग सोशल मीडिया पे ऐक्टिव होते हैं। एक क्लिक के साथ तस्वीर पोस्ट हो गई।
वाह-वाही, अद्भुत, शानदार, कमाल, धमाल, मर्मस्पर्शी, दिल को छूने वाली, आदि कमेंट्स से उसकी वाल पट गई। लव, दुखी वाले, लाइक, केयर आदि एमोजी उसकी पोस्ट पे बरस पड़े। पहली बार उसकी पोस्ट ने सौ का आँकड़ा पार किया था, और कइयों ने उसे फोन करके तारीफ भी की थी। एक स्टार का जन्म हो चुका था। वो आ चुका था।
एक दो दिन वो नशे मे ही रहा, हमेशा अपनी पोस्ट के लाइक गिनता था, घड़ी घड़ी सोशल मीडिया चेक करता था। हर एक कमेन्ट मे धन्यवाद, आभार आदि लिख के फूला नहीं समाता था। ऐसे ही कमरे मे फोन पे चेक करते हुए वो नहाने के बाद बाल सँवार रहा था, इस तस्वीर से इम्प्रेस हुई एक लड़की ने उसे मिलने के लिए बुलाया था। उसने शीशे मे खुद को निहारा, बालों को सँवारा। आदत से मजबूर एक हाथ फोन पे चल रहा था। उसने सोशल मीडिया वाली फिर से तस्वीर देखी, खुशी की अतिरेकता मे फोटो को चूमा और तैयार होने लगा। कुछ देर बाद फिर से उसने फोन देखा और चौंक उठा। कुछ अलग सी लग रही थी वो तस्वीर। उसने ध्यान से देखा तो उसमें गिद्ध गायब था। उसने आश्चर्य और डर से चौंक के सर उठाया और देखा कि वो गिद्ध तस्वीर से निकल कर शीशे मे आ चुका था और खुद के अक्स मे उसे ही निहार रहा था।
‘Giddh’ A Story by Rishi Katiyar