हम भूखे लोग हैं


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हम लाचार लोग हैं
लोगों को मरते देखते हैं उस तरह
जैसे घोंसले से ज़मीन पर गिरता देखते हैं अंडा
और मुँह से निकालते हैं ‘आह’ की आवाज़।

हम कुंठित लोग हैं
कमरे में बैठ कोसते हैं अपने आकाओं को
और शाम चढ़ते निकल जाते हैं
क्रिकेट के मैदान को बिना मास्क चढ़ाए।

हम विद्यार्थी लोग हैं
हमें परीक्षाएँ पास करनी है
बीमार की ज़रूरतों से हमें उतना ही लेना है
जितना मज़दूर को नई पार्टी की सरकार बनने से।

हम काबिल लोग हैं
आपदा को अवसर में बदलते हैं
हम मौत पर कविताएँ लिखते हैं और
ज़िंदा लोगों में बाँटते हैं अपना हुनर।

हम भूखे लोग हैं
लाशों के ढेर से कविताएँ चुनते हैं
जैसे कचड़े के डिब्बे से बीनता है कोई
भात का दाना।

‘Hum Bhookhe Log Hain’ A Hindi Poem by Kumar Divyanshu Shekhar

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