हम भूखे लोग हैं


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36

हम लाचार लोग हैं
लोगों को मरते देखते हैं उस तरह
जैसे घोंसले से ज़मीन पर गिरता देखते हैं अंडा
और मुँह से निकालते हैं ‘आह’ की आवाज़।

हम कुंठित लोग हैं
कमरे में बैठ कोसते हैं अपने आकाओं को
और शाम चढ़ते निकल जाते हैं
क्रिकेट के मैदान को बिना मास्क चढ़ाए।

हम विद्यार्थी लोग हैं
हमें परीक्षाएँ पास करनी है
बीमार की ज़रूरतों से हमें उतना ही लेना है
जितना मज़दूर को नई पार्टी की सरकार बनने से।

हम काबिल लोग हैं
आपदा को अवसर में बदलते हैं
हम मौत पर कविताएँ लिखते हैं और
ज़िंदा लोगों में बाँटते हैं अपना हुनर।

हम भूखे लोग हैं
लाशों के ढेर से कविताएँ चुनते हैं
जैसे कचड़े के डिब्बे से बीनता है कोई
भात का दाना।

‘Hum Bhookhe Log Hain’ A Hindi Poem by Kumar Divyanshu Shekhar

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: