जिसके पास चली गई मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गई
अब जो घिरती हैं काली घटाएँ
उसी के लिए घिरती है
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगन्ध
अब नहीं मेरे लिए
हल नही बैल नही
खेतों की गैल नहीं
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हार नहीं मेरे लिए
जिसकी नहीं कोई ज़ामीन
उसका नहीं कोई आसमान।
‘Iss Barish Mein’ A Hindi Poem by Naresh Saxena