इतवार


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कोई किताब उठायी
दो-चार सफ़्हे उलट-पलट कर रख दिए

टीवी पर चल रही फ़िल्म देखते – देखते
कुछ ही पलों में,
मैं अपने ख़्यालों में गुम हो रखी थी

आलमारी में बिखरे कपड़े
पूरे हफ्ते की तरह मेरा मुँह चिढ़ाते रहे

उदास नाखून
ख़ूबसूरत नेलपेंट के इंतज़ार में सादा हो रखे हैं
तो बिखरे बालों की
अपनी एक अलग कहानी है

बिटिया कुछ बेहतर खाने की तलाश में ही रह गयी

मन पूरी दुनिया में डोल रहा था
और मैं
खिड़की-दरवाजे बंद किए
अंधेरे कमरे में पूरी दोपहर
बिस्तर पर करवटें बदलती रही

ये वही था
जिसका पूरे हफ्ते इंतज़ार किया था

मेरे हिस्से का
टूटा-फूटा इतवार

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