जड़ें


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जड़ें कितनी गहरीं हैं
आँकोगी कैसे?
फूल से?
फल से?
छाया से?
उसका पता तो इसी से चलेगा
आकाश की कितनी
ऊँचाई हमने नापी है,
धरती पर कितनी दूर तक
बाँहें पसारी हैं।

जलहीन, सूखी, पथरीली,
ज़मीन पर खड़ा रहकर भी
जो हरा है
उसी की जड़ें गहरी हैं
वही सर्वाधिक प्यार से भरा है।

‘Jadein’ Hindi Kavita By Sarveshwar Dayal Saxena

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