ओ काशी !
मैं तुम्हें याद करती हूँ
तुमने इस कलयुग में हमारे प्रेम को अनश्वर सिद्ध करने हेतु सभ्यता और संस्कृति की तौंक पहन ली है
गोदलिया, लंका, अस्सी को कोई नहीं जानेगा
काशी को दो ही नाम से जाना जाएगा
महादेव और काशी का काशी
काशी तुम्हारे नाम पर चौक, घाट या मंदिर नहीं
तुम्हारे और मेरे नाम पर ट्रेनें और बसें चलनी चाहिए
प्रेमियों की मृत्यु मिलन के अभाव में आपदा बन जाती है
काशी तुम कोई व्यक्तिवाचक नाम नहीं, तुम द्वीप हो
जहां मेरी जीवन यात्रा की पूर्णाहुति होगी
काशी… हम दोबारा काशी में जन्म लेंगे
एक शहर से दूसरे शहर तक की दूरी
पूरी एक सदी जितनी खिंचती चली जाती है
काशी मोक्षदायिनी कहलाती है
मैं तुम्हारी आवाज़ सुनकर ही मुक्त हो जाती हूँ
मैं से तुम की यात्रा
हम पर अंत होकर
कविता और कहानी बनेगी
जिसे अनंत तक गाया जाएगा
गंगा सो प्रेम तेरो, घट घट में तू समाएं
जो काशी की काशी में काशी की बन जाएं।
‘Kashi Ka Kashi’ A Hindi Poem by Juvi Sharma