पिता
अब घर में कोई चिह्न नहीं है तुम्हारा
सब धीरे धीरे मिट गया
कुछ चीजों को ले गए महापात्र
कुछ जला दीं गईं
तुम्हारा चश्मा पड़ा रहा तुम्हारे तहखाने में
कई महीने
फिर किसी ने उसे चुपके से
गंगा में प्रवाहित कर दिया ।
तुम्हारे जूते
तुम्हारी घड़ी
तुम्हारी टोपियाँ सब कहाँ खो गईं जो
खोजने पर भी नहीं मिलतीं।
जब तुम थे
तब घर कैसे भरा था तुम्हारी चीजों से
हर तरफ तुम होते या तुम्हारी चीजें होतीं
तुम जहाँ नहीं भी होते थे वहाँ से भी आती थी
तुम्हारी आवाज
तुम्हारी पोथियाँ, तुम्हारी डायरियाँ, तुम्हारी कलमें
तुम्हारे मित्र तुम्हारे बाल सखा, सब कहीं गुम गए।
याद करता हूँ
कितने तो गमछे थे तुम्हारे
कितने कुर्ते
कितनी चुनदानियाँ
कितने सरौते
पर खोजता हूँ तो कुछ भी नहीं मिलता घर में कहीं
जैसे किसी साजिश के तहत तुम्हारी चीजों को
मिटा दिया गया हो
घर से घरती से ।
ले दे कर बस एक चीज बची है
जो लोगों को दिलाती है तुम्हारी याद
वो मैं हूँ…. तुम्हारा
सबसे छोटा बेटा।
पता नहीं क्यों लोग मुझे नहीं करते प्रवाहित
नहीं कर देते किसी को दान।
‘Koi Chinh Nahi Hai’ Hindi Poem by Bodhisattva