पहाड़ों के सहारे उतरती है नदियाँ
पहाड़ो के सहारे बहती है हवाएँ
पहाड़ों के सहारे ही आगे बढ़ते हैं बादल
पहाड़ों के सहारे उतरती है सुबह की पहली किरण
पहाड़ों के सहारे-सहारे ही चढ़ता है रात का अंधेरा
पहाड़ों से ही मैदान में उतरा था मनुष्य भटकते हुए,
संभावनाओं की तलाश में,
हज़ारों वर्ष पूर्व।
पहाड़ों पर ही लौटता
फिर से वह
स्वयं को पाने।
उन्हीं पगडंडियों से,
जिन से वह नीचे उतरा था।
ओ मनुष्यों!
इन्हें बचा लो।
बचा लो पहाड़ों को,
बच जायेंगीं तब नदियाँ भी,
जंगल भी,
जानवर भी,
हवा,
बादल,
रोशनी,
और
मनुष्य भी।
‘Pahado Ke Sahare Jeevan’ A Hindi poem by Shubham Ameta