तुम्हें प्रेम का केंद्र मानकर यदि
अपने हृदय पर वृत्त खींचता
तो जीवन के अतिरिक्त स्पंदनों के लिए भी
तुमसे अनुमति लेनी पड़ती
प्रेम करने के लिए जीवित रहना आवश्यक था
इसलिए ऐसा कुछ नहीं किया
नदी में पाँव डालकर बैठने पर
उसके नग्न उन्मुख प्रवाह को
मेरे पैरों की चपलता ने व्याकुल कर दिया था
लहरों के साथ लौटती हुई मलयज की गंध
मुझे तुम्हारे बनाए भ्रम-लोक में
ले जाकर छोड़ देती थी
मैं जानता था यदि कूलङ्कषा में डूबने से बचा
तो तुम्हारी कल्पना के शयन में छूटेंगे प्राण
मन की मंजूषा में बैठा कठफोड़वा
जब भी मानस पटल पर अपनी चोंच मारता
तुम्हारे नाम के लिपिचिह्न उभर आते थे
फिर मुझे याद आया कि
जाने वाली देह अपना नाम छोड़
सबकुछ लेकर चली जाती है
मिलने वालों की भीड़ से भरे इस संसार में
बस वही एक नाम याद आता है
जिसे जीवनभर एन्द्रजालिक के रहस्य की तरह
छिपाया हुआ था हमने
रहस्योद्घाटन जादूगर से उसकी कला ही नहीं छीनता
प्रेमी युगलों से उनका प्रेम भी छीन लेता है
‘Prem Ka Rahasyodghatan’ A Hindi Poem by Suraj Saraswari