जिस घड़ी तुम ने मेरे मन की चौखट पर
कदम रखे
मैं किसी दिवास्वप्न में मग्न थी
तुम बहुत शीघ्र चले गए
नहीं निहार सकी मैं तुम्हें आँख भर
मुझे नहीं हुए तुम्हारी शुभ्रता के दर्शन
नहीं देख सकी तुम्हारी लालिमा
मैं वंचित रही तुम्हारी गुनगुनी दुपहरी से
मुझे नहीं मिल सका तुम्हारी मंद हवाओं का स्पर्श
यूँ ही आकर चला गया था बसन्त
उसे मैं ने अपनी लापरवाही से खो दिया
और मैं वंचित रही उस के असीम सौंदर्य से
शायद लौट जाएगा इसी तरह हेमन्त भी
न जाने क्यों मैं इन ऋतुओं को समझने में
असमर्थ रही सदैव
यह किस का अभिशाप है?
‘Sharad’ A Hindi Poem by Anu Rahman