यूँ ही कहीं ठहरती हैं नहीं !
वो देखती हैं,
सपने हर दम,
नये कई हज़ार,
वो देखती हैं,
आशायें नई,
हर दिशा में हर बार,
वो देखती हैं,
रास्ते !
हर दिशा में कम से कम एक बार,
रास्ता जो लगता,
अपना सा !
टिकती हैं वो बस वहीं,
ठहरती हैं बस वहीं,
हर बार !
चाहे फेरु,
फेर दुनिया के,
चाहे कितने भी बार,
वो ठहरती टिकती हैं,
बस वहीं,
जहाँ लगे कुछ अपना सा,
सहज सरल और सपना सा,
वो ठहरती हैं बस वहीं !
मन की आँखें हैं ना,
इसीलिए मानती नहीं !
हाँ ! ये मन की आँखें!
यूँ ही कहीं ठहरती हैं नहीं !
ये मन की आँखें !