आपदा और प्रेम


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इस भीषण आपदा में
जब जीवन एक संयोग भर है
मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ
सोचता हूँ क्यों और कैसे

कुछ कहानियाँ किताबों में नहीं मिलतीं
कुछ फलसफे नहीं मिलते किसी भी ग्रंथ में
मुझे अपनी त्वचा… अपनी हड्डियों पर
लिखा मिला है एक सूत्र, एक संदेश, एक कहानी

याद आता है कि ठीक सौ बरस पहले
बीच में छूट गयी थी एक दास्तान
लगता है
प्रेम करना, खूब प्रेम करना
मेरी ऐतिहासिक जिम्मेवारी है

प्रेम कभी भी
किसी भी संक्रमण का इलाज नहीं हो पाया है
शायद हो भी नहीं सकता
मगर प्रेम से मिलती है मृत्यु को गरिमा

मनुष्य लौट आते हैं
हाँ! फिर लौट आते हैं
बड़े गर्व से प्रेम करने

हार जाती है बीमारी-महामारी
फिर आबाद हो जाती है धरती

इसलिए जब जीवन एक संयोग भर है
मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ।

‘Aapda Aur Prem’ A Hindi poem by Niranjan Kumar

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