तुम्हारे नहा लेने के बाद,
तुम्हारे भीगे तौलिये से अपना बदन पोंछना,
तुम्हारा स्पर्श पा लेने जैसा है,
ज़िंदगी के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच ये मेरे रोज़ का एक हिस्सा है।
तुम्हारे खा चुकने के बाद,
थाली में बचे हुए ज़रा से अन्न का निवाला,
चाव से खाना,
जैसे तुम्हारे हाथों का कौर ही हो
मेरे लिए प्रेम यही तो है।
साँझ ढले तुम्हारे काम से लौट आने के बाद,
तुम्हारी क़मीज़ से आती हुई पसीने की गंध को
धुलने से पहले,
अपने सीने से लगाना,
यह गंध मेरे लिए हरसिंगार के फूलों की गंध-सी होती है।
मैं अभ्यस्त हूँ इन तमाम कामों की,
जैसे रोज़ सूरज के उगने की…
मैं बेहद क़रीब हूँ, तुम्हारे पसीने की गंध वाली क़मीज़ के,
बेहद क़रीब हूँ मैं, तुम्हारे भीगे तौलिये के स्पर्श के।
तुम्हारी घड़ी और मोज़े सँभाल कर
रोज़ उन्हें ठीक जगह पर रख देना,
मेरे लिए प्रेम कर लेना है।
‘Abhyast HuN’ Hindi Poem by Ankita Shambhawi