देहाती औरतें


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देहात की औरतें,
बड़ी अजीब होती है
वे मुक्त विचारों की नायिकाएं
अपनी सीमायें भी जानती है, लेकिन
खुल कर हंसती है, बिना मुँह को छुपाये,
कितनी खूबसूरत लगती है!
इतराती है अपने अल्हड़पन पर,
बेबाकी से कह देती है, जो वे सोचती है,
अपनी आँखों में अपना स्वाभिमान लिए फिरती है।
वे शिव के जुड़े में बंधी गंगा
जितनी आज़ाद होती है,
शिव नहीं होती है! किन्तु…
जिगर रखती है, हलाहल निगल लेने का,
कि जी सके कई ज़िंदगियाँ।
वे पागल होती है,
जानवरों से प्रेम करती हैं
गाय, भैंस, भेड़, बकरी
यहाँ तक कि उनके बच्चों तक से प्रेम करती हैं!
नीम से प्रेम करती हैं,
पीपल से प्रेम करती हैं,
जंडी, कीकर, बेरी सबसे
पूजने की हद तक प्रेम करती हैं।
बतियाती हैं उनसे सुख दुःख,
उनके दुख पढ़ती हैं।
वे चढ़ सकती हैं पेड़,
लेकिन पेड़ पर नही चढ़ती
कहीं टूट ना जाये डाली, झड़ ना जाये पत्ता
कहीं दर्द में ना आ जाये पेड़,
वे पेड़ के दर्द को महसूसती हैं
वे उम्र भर पेड़ बनी रहती हैं,
झुकती है, ताकि चूम सकें
अपनी मिट्टी और फिर उठ खड़ी होती है।

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