देवी


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36

‘मगर चाची, लाल रंग ही क्यूं?’
आल्ता लगवाती हुई मधु ने पूछा।

‘लाल रंग शुभ होता है बिटिया।
सुहाग की, खुशी‌ की निशानी।
जैसे खून भी तो लाल होता है,
सुंदर सा लल्ला भी तो देगी तू हमें।’
कहकर चाची शर्माती हुई हंसने लगी।

तभी एक और महिला बोली,
‘ये तो आजकल मिलने लगा पैकेट में बाजार में,
हम तो सुपारी के पत्तों से सुर्ख लाल महावर बनाते थे।
बहुत अच्छे गुण होते हैं उस के।
ठंडक भी पहुंचाता है।
और नारी तो देवी होती है देवी।
लक्ष्मी की तरह पूजी जावेगी तू नए घर में।’

‘चलो चलो, मंदिर जाना है,
जल्दी उठो।’
चाची बोली।

मधु ने दूर कोने में बैठी जया से कहा,
‘अकेली बैठी महावर लगा रही है जया,
जा तू भी मंदिर।’

सुशीला ताई हाथ हिलाती हुई,
आंगन से घर के दरवाज़े की ओर चलती हुई बोल पड़ी,
‘वा ना जा सकती,
महीना आया हुआ है।’

और यह सुनकर
मधु की नज़र
जया के पैरों के ठंडे आल्ते से
उसकी आंखों में सुलग रही चुप्पी पर जा कर टिक गई।
मधु बस ये सोचती रही,
कि लक्ष्मी शुभ है या दुर्गा।

‘Devi’ A Hindi Poem on International Menstruation Day by Dushyant

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: