मरने में मरने वाला ही नहीं मरता
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।
जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।
जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।
जैसे आँसुओं के साथ
मरती है थोड़ी सी आग भी।
जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।
जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्यु
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
‘Mrityu Jijivisha Se Bahut Darti Hai’ Hindi Poem by Dr. Kanhaiya Lal Nandan