मृत्यु जिजीविषा से बहुत डरती है


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36

मरने में मरने वाला ही नहीं मरता
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!

जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।

जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।

जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।

जैसे आँसुओं के साथ
मरती है थोड़ी सी आग भी।

जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।

जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।

उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।

इसीलिये मृत्यु
जिजीविषा से
बहुत डरती है।

‘Mrityu Jijivisha Se Bahut Darti Hai’ Hindi Poem by Dr. Kanhaiya Lal Nandan

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: