मैं रोज जी लिया करूंगा
अपनी हथेली पे
स्पर्श तेरी हथेली का
अपनी हथेली पे
स्पर्श तेरी हथेली का
हथेली पे घटित हुआ वो स्पर्श
रोज घटा करेगा हथेली पे
तुम्हारी वो छुअन
कभी नर्म धुप की गुनगुनी रजाई
और कभी भींगी हुई भदभदाती बारिश
कभी फुर्सत में गुफ़्तगू करता पूनम का चाँद
कभी पहाडों से बहकर आती हुई बयार की गुदगुदाती खुशबू
और कभी…
उदास लम्हों में लबों पे हरकत करती
एक जिन्दा मुस्कान भी
टिका रहेगा वो स्पर्श हमेशा मेरे शाख के पत्तो पर
तुमने जितना भी मुझे छुआ है
उसकी लचक को जिस्म पे पहन के
मैं हमेशा बना रहूँगा बसंत
ये वादा
मैं कर देना चाहता हूँ तुम्हारे जाने से पहले।