केदार जी को स्मरण करते हुए


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36
खेत में चुगते पक्षियों पर
कभी मत
फेंकना पत्थर
नहीं तो भूखा मर जाएगा
समूचा आदम जात

व्याकुल भटकते निरुपाय को
मत देना
देहरी से धक्का
नहीं तो रोएगा कुत्ता
रातभर दहलीज पर

नियति की आँखों में
मत धँसना
बनकर कोई काँटा
नहीं तो फ़िसल जायेंगी
मछलियाँ हाथों से

राह चलते पत्थर को
मत मारना ठोकर
नहीं तो गिर पड़ेगा
भर-भराकर
साँसों का पहाड़

जहाँ दिन में भी
प्रतिबिंबित होती हो रात
उस जंगल की ओर
कभी जाना मत
नहीं तो खा जायेगी
एक चुप्पी दिन के उजाले में

चाहे बीत जाएँ सैकड़ों वसंत
पर उस प्रेमिका की
सुन्दर प्रतीक्षा पर
कभी मत करना सन्देह
जो पत्तियों के पाँव में
मेहंदी लगा कर
पतझड़ का इंतज़ार करती है।

(केदारनाथ सिंह जी की एक कविता से प्रेरित)

‘Kedar Ji Ko Yaad Karte Huye’ Hindi Kavita By Piyush Tiwari

 

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: