केदार जी को स्मरण करते हुए

खेत में चुगते पक्षियों पर
कभी मत
फेंकना पत्थर
नहीं तो भूखा मर जाएगा
समूचा आदम जात

व्याकुल भटकते निरुपाय को
मत देना
देहरी से धक्का
नहीं तो रोएगा कुत्ता
रातभर दहलीज पर

नियति की आँखों में
मत धँसना
बनकर कोई काँटा
नहीं तो फ़िसल जायेंगी
मछलियाँ हाथों से

राह चलते पत्थर को
मत मारना ठोकर
नहीं तो गिर पड़ेगा
भर-भराकर
साँसों का पहाड़

जहाँ दिन में भी
प्रतिबिंबित होती हो रात
उस जंगल की ओर
कभी जाना मत
नहीं तो खा जायेगी
एक चुप्पी दिन के उजाले में

चाहे बीत जाएँ सैकड़ों वसंत
पर उस प्रेमिका की
सुन्दर प्रतीक्षा पर
कभी मत करना सन्देह
जो पत्तियों के पाँव में
मेहंदी लगा कर
पतझड़ का इंतज़ार करती है।

(केदारनाथ सिंह जी की एक कविता से प्रेरित)

 

‘Kedar Ji Ko Yaad Karte Huye’ Hindi Kavita By Piyush Tiwari

 

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