उसकी पसीजी हथेली स्थिर है
उसकी उंगलियां किसी
बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं
उसका निचला होंठ
दांतों के बीच नींद का स्वांग भर
जागने को विकल लेटा हुआ है
उसके कान ढूँढ़ रहे हैं असंख्य
ध्वनियों के तुमुल में कोई
पहचानी सी आहट
उसकी आंखें खोज रही हैं
बेशुमार फैले संकेतों में
कोई मनचाहा सा इशारा
उसके तलवे तलाश रहे हैं
सैंकड़ों बेमतलब वजहों में चलने का
कोई स्नेहिल सा कारण
वह बहुत शांति से साधे हुए है
अपने भीतर का कोलाहल
समेटे हुए अपना तिनका-तिनका
प्रतीक्षा कर रही है किसी के आगमन पर
बिखरने की।
‘Pratiksha’ A Hindi Poem by Rahul Tomar