ज़िंदगी में प्रेम ज़रूर करना तुम।
और करते रहना, कोशिश उसे पाने की।
क्योंकि जैसे सत्य सब “शिव” हो जाएँगे अंत में,
छोटी-मोटी पगडंडियाँ खुलेंगी राजमर्ग पर
और नदियाँ सारी जा समुद्र में मिल जाएंगी।
ठीक वैसे अंत में, मुझे लगता है दोस्तों,
सब प्रश्न एकात्म हो जाएंगे।
सुलझ जाएंगी तुम्हारी गुत्थियां-पहेलियाँ
सब उलझनें सीधी रेखा में ढल जाएंगी।
और मकसदों के धुँधले जंगल में देखना –
साफ़ एक मंज़िल नज़र तुमको आएगी।
कश्मकश, जुस्तजू, मसअलों से हु-तू-तू
तुम्हारे “टाइम प्लीज़।”
कह देने से रुक जाएगी।
और फ़िर रिज़्यूम नहीं होगी।
तुम तौलिया उठाकर मैदान छोड़ दोगे।
पसीना मस्तक पर से पोंछते हुए
तुम पोंछ दोगे हर वो डर
जो मैदान में तुम्हारे भीतर था।
निचोड़ते हुए अपने गीले-गाढ़े बाल,
तुम बोझ हार-जीत के बहा दोगे।
और एक गहरी साँस अंदर ले कर,
आ जाओगे बाहर हर एक स्पर्धा से।
“स्टैंड्स” में बैठकर तुम
जब सब “घट चुका।” को
फास्ट-फॉरवर्ड में देखोगे तो रो पड़ोगे।
रुंधे हुए गले से कुछ बोल ना सकोगे,
पर सोच सकोगे –
कि कोई भी मैदान अकेले फतह नहीं होता।
बगल में देखोगे – कोई नहीं दिखेगा,
आगे-पीछे-ऊपर-नीचे – कोई नहीं मिलेगा।
तब लगेगा, कि प्रेम करना था। ज़रूर करना था।
आख़िर में पता चलेगा कि “प्रेम” मंज़िल थी,
“प्रेम” मक़सद था, एकमात्र जीवन का।
और सब उलझनों के सुलझने से बनी
सीधी रेखा “प्रश्न चिह्न” बन जाएगी –
और पूछेगी कि क्यों प्रेम नहीं किया?
और अगर किया तो पाया क्यों नहीं?
प्रद्युम्न को यूट्यूब पर सुनें।
‘Prem Ki Aavashyakta’ A Hindi Poem by Pradumn R. Chourey