हिंदी कविता

नदी, फूल और तारे

तुम और तुम्हारे बाद भी जो बचा हुआ है उस शेष अस्तित्व का आधार क्या है! नदियाँ सूख जाने के बाद भूमिगत हो जाती है और अपने सबसे विलक्षण क्षणों

किक्की के लिए

तुम्हें बढ़ते हुए देखने से ज़्यादा सुखद मेरे लिए और कुछ नहीं, परन्तु तुम ऐसे वक़्त में बड़ी हो रही हो मेरी बच्ची जब मानवता की हांफनी छूटी जा रही

प्रेम

मेरी आत्मा के माथे पर लंगर डाले पड़े हैं सदियों से तुम्हारे वो चुम्बन जो पूर्ण होने से पहले खींच डाले गए विरह के क्रूर जाल में फंसाकर; मेरा प्रेम

जितना भी तुमने छुआ है मुझे !

मैं रोज जी लिया करूंगा अपनी हथेली पे स्पर्श तेरी हथेली का हथेली पे घटित हुआ वो स्पर्श रोज घटा करेगा हथेली पे तुम्हारी वो छुअन कभी नर्म धुप की

रोशनी

इस रोशनी में थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है जिसने चाक पर गीली मिट्टी रखकर आकार दिया है इस दीपक को इस रोशनी में थोड़ा-सा हिस्सा उसका भी है जिसने उगाया

चंद ही रोज़ और फिर बदल जाएगी ज़िंदगी

उदास शहर की उदास खिड़की पर इन दिनों बेरुख़ी है नहीं उतरता उसकी ग्रिल पर चिड़िया का शोर चारों ओर फैले सुनसान में संगीतकार सुन नहीं पा रहा स्वर साधु

परिभाषा

देखना सीखना हो तो पृथ्वी से सीखना कैसी तप्त नज़रों से देखती है बादलों को कि पिघल जाता है आसमान जो सीखना हो बरसना तो बादलों से नहीं किसी रूठी

कृष्ण की चेतावनी

वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह

किताबें बात करती हैं – सुधीर शर्मा

तुम्हारी वो पुरानी टीन की पेटी निकालो तो के जिसकी धुल पर बरसों से इक कपडा नहीं मारा उसी में कत्थई एक डायरी कोमा में है कबसे वहीँ बाज़ू में

पीपल का पेड़ – गौरव धनोतिया

घर की छत को झांक रहा एक पीपल का पेड़, अभी दो दिन पहले ही तो फूटी हैं कोपलें उसकी, पिछले दो सालों से देख रहा हूँ उसकी उम्र, कद

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