तुम्हें ज्ञात है


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तुम्हारी सुगंधि इतनी रमणीय है कि,
कोई भी पुष्प,
तुम्हारे सम्मुख आने से कतराता है;

तुम्हारा सौंदर्य इतना चित्ताकर्षक है,
कि देवबालाएँ भी नित्य झेंप खाती हैं;
तुम्हारे स्पर्श से कोपलें फूटती हैं,
पल्लवन प्रारम्भ होता है;

तुम्हारे वाचन की माधुर्यता में हो विलीन,
लहरें सम्मार्गी हो जाती हैं,
व्योम मोहक वृष्टियाँ प्रेषित करता है,
और थिरक उठती हैं पत्तियाँ; 

मैं जानता हूँ, 
तुम्हें भी ये सब ज्ञात है,
फिर भी जब कभी तुम यह पूछती हो,
क्यों है तुम्हें.. इतना स्नेह मुझसे?
तो मैं बिना कुछ कहे, 
अपलक, तुम्हें देखते रह जाता हूँ,
और तुम्हारा हृदय 
आत्मविभोर 
हो उठता है।

‘Tumhe Gyat Hai’ A Hindi Poem by Vijay Bagchi

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