हे प्रिये!
मैं उदासीनता के दुःख में हूँ
मुझे विरह के अवसाद से
बचा लो…
पंछियों के स्वर सङ्गीत नहीं लग रहे
मौन तेरे काँटों से तेज दिल में चुभ रहे
मेरे रूदन की चीख़ से कान बहरे हो चले
नैनों से रैन-रैन गिर आँसू तकिया भिगो रहे
तू जो छू ले मुझको
विरह को त्याग दूँ
तू जो देख ले प्रेम से,
श्वास तुझपे हार दूँ
मेरी प्रिये…
बाँहों में भरकर मुझे
प्राण फ़िर से भर दो…
हे प्रिये!
मैं उदासीनता के दुःख में हूँ
मुझे विरह के अवसाद से
बचा लो…
ख़ुशियों के सुख महसूस नहीं हो रहे
दिन के उजाले काली घटाओं से लग रहे
हृदय मस्तिष्क स्वयं से वार्त्तालाप कर रहे
देह देह होकर भी पार्थिव शरीर-से लग रहे
तू जो बन जा मुख की गङ्गा
श्मशान को आग लगा दूँ
तू जो कर दे दिल को चन्दन
चिताओं को राख बना दूँ
मेरी प्रिये…
बन दवा पीड़ाओं की मेरे
फ़िर से गले लगा लो…
हे प्रिये!
मैं उदासीनता के दुःख में हूँ
मुझे विरह के अवसाद से
बचा लो…
‘Virah Geet’ A Beautiful Hindi Poem by Ajay Yadav
कविता संग्रह: ग्यारह तिल किताब अमेज़न पर उपलब्ध है। |

अजय यादव, जो ख़ुद को एक आकस्मिक रचनाकार के रूप में दावा करते हैं। यह न केवल एक प्रतिभाशाली शृङ्गार-रस के रचनाकार हैं, बल्कि शब्दों और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्यार भरे शब्दों को बुनने में भी माहिर हैं। इनके प्राथमिक रुचि में सङ्गीत और यात्रा शामिल है। इनकी प्रथम शृङ्गार की रचनाओं से सुसज्जित पुस्तक “ग्यारह तिल” प्रकाशित हो चुकी हैं।