दुर्दिनों का आत्मकथ्य


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यातायात संबंधी नियमों में उलझे लोगों के पास
नहीं होता तटस्थ रहने के नियम-कायदे
समझने भर का समय
जीवन के सबसे उदास दिनों में
निर्विकल्प झेलनी है एकाकीपन की पीड़ा

बुनना है उदासी के उघड़े हुए ऊनी रेशों से विवशता का स्वेटर
अपनी जिजीविषा तलाशते दिनों में
अपरिहार्य दुःख की ख़बरें सुनेंगे और खण्ड-खण्ड टूट जायेंगे
सामूहिक न होने की सामूहिकता में
आवृत्तियों के होने की गाँठ से बचना है मुझे

सबमें लगी है एक-दूसरे के कंधों पर
पांव धर कर आगे छलांग मार बढ़ जाने की होड़
सभी को निर्बाध ही पार करनी हैं बाधाऍं
इन दिनों सबसे जिम्मेदार नागरिक के
अपने सबसे जिम्मेदार वक्तव्य में
चलन है चुप रहने का

उम्मीदों को भी एक दिन मरना है मौत अपनी
आत्महीनता के कचरों के ढेर पर बसे
इन आत्ममुग्ध शहरी बाबुओं से
सिद्धांतों का अरण्य बचा लेने की
कोई उम्मीद नहीं मुझे

आत्ममुग्धता से पीड़ित व्यक्ति
आत्मचिंतन में कभी समय व्यर्थ नहीं करता

दिवास्वप्न कर रही है दुस्वप्न की अनुकृति
खो रही मौलिकता में याचक बनकर
भटकना है जीवन भर

इस उजाड़-ऊसर दिनचर्या में
घृणा और ग्लानि से भर देता है
ज़रूरी नहीं हर बार किसी के होने का बोध
प्रदान करे संबल बना रहे प्रेरणास्रोत।

‘Durdino Ka AatmKathya’ Hindi Kavita By Piyush Tiwari

 

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