~ 1 ~
जब कोई औरत
तुमसे कुछ न चाहे
दैहिक संसर्ग के सिवा
समझ लेना
उसने छोड़ दिया है
तुम्हारी प्रजाति से
मनुष्य होने की
उम्मीद करना।
~ 2 ~
जब कोई औरत कहे
मुझसे दिन के उजाले में नहीं
अंधेरी रात में मिल
रुक मेरे साथ सुबह तक
बस एक रात के लिए ही सही
वह देह नहीं मांगती तुमसे
अपना सुकून खोजती है
तुम्हारा साथ उसे
महफूज लगता होगा
तुम्हारे अंधेरे
तुम्हें सुबह तक ठहरने नहीं देते
वह अपनी जलती हुई लौ लिए
लौट जाती है
जलाए रखती है
उस मुहब्बत को
जो उसने तुम्हारे होने में
महसूस की
यह सोचते हुए
शायद वह आंच
तुम्हें छू न सकी थी।
~ 3 ~
जब कोई औरत
संशय और भरोसे के बीच झूलती है
ठुकरा देती है
प्रथम चुंबन का प्रस्ताव
और खुद ही हो जाती है रुआंसी
पिघलने देती है तुम्हारे हाथ में
अपना हाथ और अपना आप
कभी झेंप कर संभालती है आंचल
कभी उलझ जाती है बेशर्मी से
तुम्हारी आंखों से
एक पल में बढाने लगती है
प्रेम की पींगे
दूजे पल में फिर
संशय की सूली पर टंग जाती है
गुलाब की टहनियों ने
लहुलुहान किया है उसके हाथों को
कमल की तरफ बढ़ाया हाथ
और कीचड़ में सन गए पांव
चमेली की बेल में
बैठा मिल गया था उसको सांप
उसने खिलते हुए नहीं
अक्सर झरते हुए ही देखा हरसिंगार
वह अपनी शंकाओं की गठरी
तुम्हारे सामने खोलना चाहती है
उसे मालूम है
तुम्हें पसंद नहीं है
आधा-अधूरा प्यार
उसका पूरा मन
उससे कहीं गिर गया था
मिलता नहीं है।
‘Jab Koi Aurat‘ A hindi peom by Devyani Bhardwaj