यह संयोग ही है कि
मैं जीवित हूॅं इस दुनिया में
मोहपाश से बधी यह ज़िन्दगी
प्रतिदिन दम घुटने का कारण देती है
सड़क पर रिरियता आदमी
बताता है मैं जीवित प्रतीत नहीं होता
जैसे उसने देख लिया हो
सालों पहले प्राण का
हाथ छोड़ चुकी एक लाश
जो बस चलने की कला नहीं भूली
पतझड़ के पेड़ मेरी दुर्दशा पर
बचे खुचे पत्ते भी झाड़ चुके हैं
मानो ईश्वर से प्रार्थना में
मेरी मुक्ति मांग रहे हों
वसंत आने से पहले
दूध की आस लगाए बैठा
बच्चा मुझे देखते ही
अपनी असहाय माॅं को प्रश्न भरी
दृष्टि से देखता है
आख़िर वो उसे क्यों बड़ा करना
चाहती है इन बेढंगे लोगों के बीच
फिर भी मैं उठ खड़ा हुआ हूॅं
जीवित दिखने की
एक और कोशिश में
रिरियते आदमी को सहारा देने
पेड़ों को वसंत के साथ खुश देखने
और भूखे बच्चे को बड़ा होते देखने के लिए
मर चुकी संभावनाओं को
जीवन देकर
एक हसीन शाम की तलाश
में भटकता हुआ
आपको मैं मिलूंगा किसी रोज़…
‘Vasant Aane Se Pahle‘ A Hindi Poem by Ravi Swatantra