ईश्वर ने रची एक चिर युवा स्त्री,
जिसने अनथक चलते चलते भी नहीं माँगा कभी
एक क्षण विश्राम भी
अपनी हरी देह पर लिपटी
नीली साड़ी के अलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य में
जब ‘कंक्रीट’ के नख उसकी देह को चीरते है,
तो उसकी एक चीख हिला देती है
सम्पूर्ण सीमेंट के जाल से बुनी
कृत्रिम बुनियाद को
चूँकि मौन चीखें जल्द भुला दी जाती है,
इसलिए
उसकी देह और परिधान बचाने की क़वायद में
ईश्वर ने भेजे कुछ दूत
जिनमें से कुछ ‘आतातायी’ में परिवर्तित हो गए,
और जो थोड़े बहुत बचे उन्हें
साक्षात श्रीकृष्ण रूप में
आज ‘आदिवासियों’ के नाम से जाना जाता है।
और आदिवासी सृष्टि में
मनुष्यता का वह परिचय है
जिनके तन की नग्नता ने,
सभ्यता की नग्नता को ढँक कर
अपने सभ्य होने का परिचय दिया है।