कुछ इस तरह: राजेश झरपुरे जी के कविता संग्रह को पढ़ते-पढ़ते

राजेश झरपुरे हिंदी कविता एवं कहानी की दुनिया में एक सुपरिचित नाम है। इन दिनों उनके कविता संग्रह कुछ इस तरह को पढ़ने का सुयोग बना। राजेश झरपुरे मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं के कवि हैं। पिता, पुत्र, पत्नी, प्रेमिका, बहन, मित्र, बच्चे आदि उनकी कविताओं में अलग-अलग रूपों में पूरी शिद्दत से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

इस कठिन समय में जब ईश्वर का होना न होना ही प्रश्नार्थ है, मजबूर इंसान के पास सिर्फ प्रार्थना ही एक आस बची है। आज मनुष्य की पहचान उसकी वाणी-विचार नहीं बल्कि उसका पहनावा है। एक टोपी मनुष्य के सारे दुष्कर्मों को ढँक सकती है, एक टोपी सारे दोषों को प्रकट कर सकती है (कविता टोपी)। आदमी सिर बचाए या टोपी ?

किताब अमेज़ॉन पर उपलब्ध है।

रिटायरमेंट से जुड़ी हुई कुछ बेहद मार्मिक कविताएँ इस संग्रह में हैं। एक आम आदमी सुख की तलाश में दुःख लिए जिंदगी भर दौड़ता ही रहता है। पूरी जिंदगी दुखों के साथ सुख की कल्पना करते हुए रिटायरमेंट के बाद भी आदमी सुख की कल्पना से डरता है। रिटायरमेंट सिर्फ पुरुष का नहीं होता उसकी पत्नी का भी होता है। पुरुष नौकरी करता है लेकिन उसका संबल बनती है उसकी पत्नी जो उसकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखती है। ‘घर में पत्नी के नौकरी किए बिना ढंग से एक दिन भी नौकरी नहीं कर सकता रिटायर होता आदमी’ (रिटायर होते आदमी की पत्नी)। रिटायरमेंट के बाद के दिनों में यही आदमी और उसकी पत्नी अपने प्रति घर के अंदर से कोई आत्मीय आवाज नहीं सुन पाते लेकिन ‘बावजूद इसके वे सदैव घर का शुभ लाभ ही सोचते हैं’ और ‘घर के सामने के दरवाजे पर बैठे बतियाते रहते हैं मानो वे उस घर के चेहरे पर बने स्वस्तिक हों’ (रिटायरमेंट के बाद के दिनों में)।

पूंजीवाद और बाजारवाद के इस युग में एक साधारण आदमी बस दौड़ रहा है न जाने किस लक्ष्य की तरफ चुपचाप, गूंगा बहरा-सा बेहद डरा हुआ। यहां तक कि उसे अपने समर्थन या विरोध की आवाजें भी नहीं सुनाई देती। वह बस बाजार की भाषा समझता है और ‘दरवाजे पर हल्की-सी दस्तक से'( कविता-दौड़) चौंक जाता है।

राजेश झरपुरे के सृजन कर्म की बुनियादी जमीन सतपुड़ा के अंचल में स्थित कोयला खदान क्षेत्र हैं। उन्होंने खनिकों को और उनकी जिंदगी को बहुत नजदीक से देखा है और इसीलिए वे कोयला खदान क्षेत्र को नो मेन्स लैंड होने से बचाने के लिए आव्हान करते हैं कि खनिक भाई तुम्हें सिर्फ अपनी लड़ाई नहीं बल्कि अपनी संतानों के ‘हिस्से की रोशनी के लिए भी लड़ना होगा तब तुम्हारी जीत पक्की होगी’ (खनिक भाई! लड़ाई अभी बाकी है)। ‘कोयला खदान की सुरंग के अंधेरे रोशनी हैं’ समाज के लिए। रोशनी के लिए खनिको को रोजगार देना जरूरी है जिस तरह पेड़ पर प्रहार करके जंगल नहीं बचाए जा सकते ‘खनिको के हाथ से छीनकर रोजगार रोशनी को नहीं बचाया जा सकता’ (रोशनी के लिए)। नेमीचंद उईके एक चेहरा है हर उस खनिक का जो रोशनी के लिए खड़ा है ‘पूरी ताकत से व्यवसायीकरण के खिलाफ’ (मैं हूँ नेमीचंद उईके)।

अंधेरे और रोशनी की इस जद्दोजहद में न जाने कितने ही खनिक शहीद हुए हैं। यहां उन सब के प्रति श्रद्धांजलि भी है जो सबके हिस्से की रोशनी लाते लाते ‘अंधेरों के खिलाफ कोयला हो गए’ (खनिक भाई! सलाम)। राजेश जी की कविताओं में जीवन अलग-अलग तरीकों से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। कवि कहता है कि सांसों का साथ छोड़ना जीवन का मरना नहीं है बल्कि ‘जीव में जीवन की अनुपस्थिति ही मृत्यु है’ (एक जरूरी पाठ)। मनुष्य के मन में जब डर होता है तो वह मरने के पहले ही मर जाता है। समाज में घटती अनेक घटनाओं पर उनकी तीव्र नजर है। बच्चे जो प्रेम और वात्सल्य से भरे होने चाहिए वे अगर चाकू से अपने सहपाठी का गला रेत दें तो चिंता चाकू कहां से आया इस बात की नहीं होनी चाहिए बल्कि इस बात की होनी चाहिए कि ‘बच्चे के बस्ते के किसी कोने में नफ़रत का बीज तो नहीं पल रहा?’ (नफ़रत का बीज)।

कुछ बहुत ही सुंदर प्रेम कविताएं इस संग्रह में हैं जो पचास पार के प्रेम की आशंकाओं में डूबती-उतराती हैं। प्रेम में डूबकर ही जीवन-मृत्यु से उबर पाता है मनुष्य, भले ही वह कर बैठे पचास पार पर प्रेम। ‘आसान नहीं है इस तरह एक अधेड़ विवाहित स्त्री का, किसी अन्य अधेड़ विवाहित पुरुष से प्रेम कर पाना’ यह कविता पुरुष मनोवृति को दर्शाती एक ऐसी कविता है जहां पुरुष जानता है कि घर परिवार पति और बच्चे होते हुए भी स्त्री के हृदय में खाली जगह कहां है। और वह उस रास्ते को जानते हुए ‘व्हाट्सएप का दरवाजा’ खटखटाते प्रवेश कर जाता है (आसान नही है)।

पिता पर लिखी हुई कुछ बेहद मर्मस्पर्शी कविताएं भी हैं इस संग्रह में। पिता से बचपन में, जवानी में हुई असहमतियों के कारण तब समझ आते हैं जब व्यक्ति खुद पिता बन जाता है और पत्नी के रूप में अपनी मां को खड़ा पाता है। बचपन में पिता के शराबी होने के कारण वात्सल्य से वंचित रहा बच्चा जीवन भर पिता को ‘मां का मांस नोचने वाले एक आदमखोर भेड़िया’ (पिता तुम इश्वर हो) के रूप में ही देख पाता है लेकिन फिर भी पिता के बुढ़ापे में उनके प्रति पुत्र का वात्सल्य से भरा होना इस लंबी कविता को प्रेम की एक नई ऊंचाई पर पहुंचाता है।

आदमी का नफा नुकसान का गणित इतना संवेदना शून्य है कि वह मृत व्यक्ति पर हुए खर्चे में भी लाभ-घाटे की तुलना कर बैठता है और कवि अनायास ही करता है चिंता कि ‘मैं अपनी मृत्यु को गमछे की कीमत से कैसे बचा पाऊंगा?’ (संवेदना)

एक गुंडे की मृत्यु के बहाने कवि अच्छे और बुरे लोगों के चेहरे से मुखौटा उतारता है। गुंडे को किसी गुंडे ने ही मारा होगा अच्छे लोग बुराई को भी अपने भीतर वाले रखने के हुनर में माहिर है गुंडे नहीं हो सकते। (गुंडा)

मित्रों के लिए कुछ छोटी-छोटी बहुत सुंदर कविताएं इस संग्रह में है। किसी से ‘ठीक-ठाक शत्रुता पालने के लिए जरूरी है पहले अच्छी मित्रता पाली जाये’ (मित्रों के लिए -2)। कवि मृत्यु को भी एक मित्र के रूप में देखता है और एक मित्र की तरह ही आकर ले जाने का आव्हान करता है।

राजेश झरपुरे की ये कविताएँ हमारे आस-पास की कविताएँ हैं। इन कविताओं को पढ़ते समय मन उचटता नहीं, बल्कि वह कविताओं की उंगली पकड़े साथ-साथ दौड़ता है। बेहद सरल सहज भाषा इन कविताओं की ताकत है और इसीलिए ये कविताएँ मन मोहती हैं। कवि को बधाई, अशेष मंगलकामनाएँ।

पुस्तक – कुछ इस तरह (कविता संग्रह)
कवि- राजेश झरपुरे
रश्मि प्रकाशन
मूल्य- 175 रुपए

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