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गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल
जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

लौटना
जो गये, उन्हें लौट आना चाहिए, लौटने से जीवन होता है परिष्कृत, व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं, और विषण्णता होती है लुप्त। क्योंकि लौटना संगम है दुःखों का, और

बथुवे जैसी लड़कियाँ
वे लड़कियाँ बथुआ की तरह उगी थीं जैसे गेहूँ के साथ बथुआ बिन रोपे ही उग आता है ठीक इसी तरह कुछ घरों में बेटियाँ बेटों की चाह में अनचाहे
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पैंतीस बरस का जंगल
उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे

बालम तेरे झगड़े में रैन गयी…
छुट्टी वाला दिन रागों के नाम होता। कमरे में जगह-जगह रागों के उतार-चढ़ाव बिखरे रहते। मुझे अक्सर लगता अगर हम इन्हीं रागों में बात करते तो दुनिया कितनी सुरीली होती।

एक ना-मुक़म्मल बयान
तारीख़ें.. कुछ तारीख़ें चीख होती हैं वक़्त के जिस्म से उठती हुई… कि मुझे सुनो, मैंने क्या खोया है तुम्हारे इस बे-मा’नी औ’ बेरुख़ी से भरे सफ़र में। कुछ तारीख़ें

मेरी स्मृति से तुम्हारा निर्गमन
पिछले कुछ वक़्त से मैं भूलने लगी हूँ, छोटी-छोटी चीज़ें, छोटी-छोटी बातें, नाम, तारीख़ें। मुझे कभी फ़र्क़ नहीं पड़ा इन बातों से, पर अब भूलने लगी हूँ वे बातें जो
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सेपियंस: मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास
इंसान के पास ऐसा क्या है जिसके नाम पर वह स्वयं को धरती का सबसे श्रेष्ठ प्राणी मानता है। यहाँ तक कि आने वाले साइबोर्ग और ऐंड्रायड को भी अपने

यार जादूगर
पुस्तक यार जादूगर में नीलोत्पल, हिंदी साहित्य में बहुत कम प्रयुक्त जादुई यथार्थवाद को प्रस्तुत करते हैं और साहित्य की कलात्मक विविधता का विस्तार करने का प्रयास करते हैं। जादुई

समीक्षा: ड्रैगन्स गेम
भारतीय जमीन पर चीन व पाकिस्तान के खतरनाक मंसूबों के साथ उतरे पाकिस्तानी जिहादी और चीनी जासूसों की कार्यविधि को लेकर यह उपन्यास लिखा गया है। यह उपन्यास अंतरराष्ट्रीय राजनीति

परीक्षित जायसवाल की किताब: लफ़्ज़ों की महक
साहित्य में नित्य नयी रचनाएं देखने व पढ़ने में आती हैं, एवं रोज नए लेखकों, कवियों से किताबों के माध्यम से मुलाकात होती है। उनकी लेखनी और उनकी विचारधारा सबल
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मुर्दा भीड़ का संताप
रोशनी उतर आयी है पेड़ों के ऊपर से नीचे घास पर मेरे तलवों से मेरे ख़ून रिसते होंठों पर, मैं महसूस कर रही हूँ सैकड़ों कीड़े घिसट रहे हैं मेरी
पितृसत्ता तुम्हारी रीढ़ कौन है
आसमान के घर से एक बड़ा सा पत्थर मोहल्ले के बीचों -बीच गिरा देखते ही देखते वह शीर्ष मंच पर आसीन हो गया औरतें जो साहसी सड़कें बनकर चल रही
Fault in Our Stars से दिल बेचारा तक
अमेरिकन उपन्यासकार है John Michael Green, इन्होंने सन 2012 में एक उपन्यास लिखा Fault in Our Stars नाम से। कथा के केंद्र में मूलतः कैंसर सरवाइवल हैं, उपन्यास बड़ा पढ़ा
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हरिशंकर परसाई – दो खुले खत
परसाई जी (22 अगस्त 1922 – 10 अगस्त 1995) के निर्वाण दिवस के मौके पर विनम्रता पूर्वक श्रद्धांजलि सहित। आज मैं उनके मित्र, रायपुर-जबलपुर से निकलने वाले हिंदी दैनिक देशबन्धु
परसाई के पंच-6
जो देश की हालत से बात शुरू करे, वह भयानक ‘चिपकू’ होता है। दुनिया की हालत वाला तो और खतरनाक होता है। बड़े भ्रष्टाचारी को बाइज्जत अलग कर देने
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मी रकसम
जहाँ एक तरफ इस वक्त नेटफ़्लिक्स, हॉटस्टार, प्राइम विडिओ आदि का OTT वार चल रहा है, और सभी बड़े बड़े डिरेक्टर्ज़, सिलेब्रिटीज़ को अपनी ओर खींचने की होड़ में लगे
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